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Class 7 Chapter -4 कठपुतली Kathputli NCERT



Kathputli / कठपुतली Poem


गुस्‍से से उबली

बोली- यह धागे

क्‍यों हैं मेरे पीछे-आगे?

इन्‍हें तोड़ दो;

मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो।

सुनकर बोलीं और-और

कठपुतलियाँ

कि हाँ,

बहुत दिन हुए

हमें अपने मन के छंद छुए।

मगर…

पहली कठपुतली सोचने लगी-

यह कैसी इच्‍छा

मेरे मन में जगी?


Summary of Kathputli / कठपुतली


कठपुतली कविता भवानीप्रसाद मिश्र जी द्वारा लिखी गयी एक हृदयस्पर्शी कविता है। प्रस्तुत कविता में हमेशा से दूसरों के ईशारों पर नचाने वाली कठपुतली को भी अपनी पराधीनता का जीवन पर क्रोध आता है। वह कहती है कि मैं धागे पर नाचनेवाली क्यों हूँ। इन धागों को तोड़ देना चाहिए।वह स्वयं आत्मनिर्भर जीवन जीना चाहती है।अतः वह आजाद होना चाहती है और अपनी इच्छानुसार जीना चाहती है।उसकी बात सुनकर अन्य कठपुतलियाँ भी पराधीनता के जीवन से मुक्त होना चाहती है।वह कहती है कि बहुत दिन हुए अपनी इच्छानुसार कार्य किये हुए।अतः अब आजादी मिलनी ही चाहिये।इस बात पर पहली कठपुतली सोचने लगी कि उसके मन में स्वतंत्रता की चाह कैसे जगी।आजाद रहना सबको प्रिय है ,लेकिन कठपुतलियों का निर्माण ही धागों के सहारों मालिक के ईशारों पर नाचना है।अतः वह अपना मूलभूत स्वभाव कैसे छोड़ सकती है।इस बात को लेकर वह चिंतातुर हो गयी।पहली कठपुतली पर सबकी स्वतंत्रता की जिम्मेदारी आती है ,तो वह सोचकर समझकर कदम उठाना जरुरी समझती है।


यह कविता भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा लिखा गया है जिसमें कवि ने हमें अपनी स्वतंत्रता के लिए सचेत रहने को कहा है| कठपुतली जो दूसरों के इशारे पर नाचती है, एक दिन गुलामी से तंग आकर बोली - ये धागे मेरे शरीर के आगे और पीछे क्यों बाँध रखे हैं? तुम इन्हें तोड़ कर मुझे स्वतंत्र कर दो ताकि मैं अपने पैरों पर खुद चल सकूँ।


एक कठपुतली के स्वतंत्र होने की इच्छा को सुनकर अन्य कठपुतलियाँ भी कहने लगीं कि हमने बहुत दिनों से अपने मन की बात नहीं की। हमने अपने मन की इच्छाओं को दबा रखा है।


अन्य कठपुतलियों के स्वतंत्र होने की इच्छा देखकर पहली कठपुतली सोचने लगती है कि इस इच्छा का क्या परिणाम होगा? क्या वे अपनी स्वतंत्रता को सँभाल पाएँगीं? अपने पैरों पर खड़ी रह पाएँगीं ? अन्य कठपुतलियाँ आज़ादी का सही उपयोग कर सकेंगी? फलस्वरूप पहली कठपुतली सोच-समझ कर कोई कदम उठाना जरूरी समझती हैं।

कठपुतली भवानी प्रसाद मिश्र प्रश्न अभ्यास


प्र.१. कठपुतली को गुस्सा क्यों आया?


उ.१. कठपुतली को उसके मालिक ने धागों से बांधकर अपने इशारों से नचा रहा था।वह अपनी गुलामी से मुक्त होना चाहती है। उसे रोज रोज मालिक के ईशारों पर नाचना पसंद नहीं है। वह अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है। यही कारण है कि कठपुतली को अपने जीवन पर गुस्सा आया।


प्र.२. कठपुतली को अपने पाँवों पर खड़ी होने की इच्छा है, लेकिन वह क्यों नहीं खड़ी होती?


उ.२. कठपुतली को मालिक अपने इशारों पर नाचने के लिए बनाता है। वह धागों के सहारे उनमें जीवन दान देता है। कठपुतली का स्वयं व्यक्तिगत जीवन नहीं है। वह पराधीनता जीवन जीने के लिए अभिशप्त है। वह सिर्फ स्वतंत्रता का स्वप्न देख सकती है ,स्वतंत्र नहीं हो सकती है। यही कारण है कि वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकती है।


प्र.३. पहली कठपुतली की बात दूसरी कठपुतलियों को क्यों अच्छी लगी?


उ.३. सभी कठपुतलियाँ सह जीवन यापन करती है। उन्हें स्वयं भी पराधीना रहना पसंद नहीं है। वह अपना स्वछंद जीवन यापन करना चाहती है। यही कारण है कि जब पहली कठपुतली आजाद होने की बात करती है ,तो सभी उसका साथ देने की बात करती हैं।


प्र.४. पहली कठपुतली ने स्वयं कहा कि-‘ये धागे/क्यों हैं मेरे पीछे-आगे?/इन्हें तोड़ दो;/मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो।’-तो फिर वह चिंतित क्यों हुई कि-‘ये कैसी इच्छा/मेरे मन में जगी?’ नीचे दिए वाक्यों की सहायता से अपने विचार व्यक्त कीजिए-

  • उसे दूसरी कठपुतलियों की ज़िम्मेदारी महसूस होने लगी।

  • उसे शीघ्र स्वतंत्र होने की चिंता होने लगी।

  • वह स्वतंत्रता की इच्छा को साकार करने और स्वतंत्रता को हमेशा बनाए रखने के उपाय सोचने लगी।

  • वह डर गई, क्योंकि उसकी उम्र कम थी।

उ.४ - कविता में धागे से बंधी हुई कठपुतलियाँ पराधीन है। इन्हें दूसरों के इशारों पर नाचने से दुःख होता है। परतंत्रता के दुःख से बाहर निकालने के लिए एक कठपुतलियाँ विद्रोह कर देती है।वह स्वतंत्र जीवन जीना चाहती है। सभी कठपुतलियाँ उसकी स्वतंत्र होने की इच्छा पर सहमती जताती है। लेकिन ,जब पहली कठपुतली पर सबकी स्वतंत्रता की जिम्मेदारी आती है ,तो वह सोच समझकर ही कदम उठाना जरुरी समझती है।



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