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Dhwani ‘ध्वनि’ Hindi Translation NCERT SHEMUSHI CLASS 8 Chapter 1


Dhwani Introduction – पाठ प्रवेश

कवि ने इस कविता के द्वारा प्रकृति के प्रति मानवीय संवेदना को दर्शाया है। इस कविता में प्रकृति का मनोहारी चित्रण है।भाषा सरल और भावपूर्ण है।तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। इस कविता में कवि का आशावादी दृष्टिकोण है।इसलिए वह जीवन की सुंदरता को पूरी तरह से जीना चाहता है यह दिखाया है।

कवि ने इस कविता के द्वारा प्रकृति के प्रति मानवीय संवेदना को दर्शाया है। कवि इस कविता के द्वारा प्रकृति के उदाहरण प्रस्तुत करते है और किस तरह प्रकृति के प्रति इंसान की अर्थात् मानव की जो भाव रहते है उन्हें दर्शाया गया है। और वह किस तरह से प्रकृति से प्रेरणा ले सकते है। जब आप कविता को पढ़ते हैं तो आपकी आँखों के सामने बहुत ही सुंदर चित्र प्रस्तुत हो जाता है। भाषा बहुत सरल है जो आपको आसानी से समझ आ जाऐगी। तत्सम और तद्धव शब्दों का प्रयोग भी किया गया है अर्थात् जो शब्द संस्कृति भाषा से जैसे के तैसे प्रस्तुत किये गए है शुद्ध हिन्दी के शब्दों का प्रयोग किया गया है। जोकि बहुत ही सरल है। कवि बहुत ही आशावादी विचारों के हैं वे जीवन के प्रति सकारत्मक सोच रखते है। और आशावादी है अर्थात् उन्हें अपने जीवन से बहुत ही सकारत्मक उम्मीद है। इसलिए वह जीवन की सुन्दरता को पूरी तरह से जीना चाहता है। यह सब इस कविता में दिखाया है।

Dhwani Summary – पाठ का सार

कवि मानते हैं कि अभी उनका अंत नहीं होगा। अभी-अभी उनके जीवन रूपी वन में वसंत रूपी यौवन आया है।कवि प्रकृति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि चारों ओर वृक्ष हरे-भरे हैं,पौधों पर कलियाँ खिली हैं जो अभी तक सो रही हैं।कवि कहते हैं वो सूर्य को लाकर इन अलसाई हुई कलियों को जगाएँगे और एक नया सुन्दर सवेरा लेकर आएंगे। कवि प्रकृति के द्वारा निराश-हताश लोगों के जीवन को खुशियों से भरना चाहते है। कवि बड़ी तत्परता से मानव जीवन को संवारने के लिए अपनी हर ख़ुशी एवं सुख को दान करने के लिए तैयार हैं। वे चाहते हैं हर मनुष्य का जीवन सुखमय व्यतीत हो। इसिलए वे कहते है कि उनका अंत अभी नहीं होगा जबतक वो सबके जीवन में खुशियाँ नहीं लादेते।


Dhwani Explanation – कविता व्याख्या


1.अभी न होगा मेरा अंत अभी-अभी ही तो आया है मेरे वन में मृदुल वसंत – अभी न होगा मेरा अंत।

अंत: समाप्ति मृदुल: कोमल वसंत: फूल खिलने की ऋतु

कवि प्रकृति के चित्रण के द्वारा नई युवओं की पीढ़ी को समझाना चाहते है कि वह अपने आलस को छोड़े और नए उत्साह, साहस और जोश के साथ जीवन का आंनद ले। यह उद्देश्य कवि का है और वह युवा पीढ़ी को जागरित करना चाहते है। प्रकृति ने फूलों की भरमार की और उनकी सुन्दरता और खुशबु चारों तरफ फैली हुई है । अभी इस समय का अन्त नहीं होगा, ऐसा कवि का कहना है। कवी कहते है कि यह वसंत उनके जीवन में अभी-अभी तो आया है अर्थात् जीवन में उत्साह और जोश की भरपूर क्षमता है, अभी कुछ दिन ठहरेगा अभी इसका अन्त नहीं होगा। और कहते है कि अभी इस चीज़ का अंत नहीं होगा क्योंकि अभी-अभी तो जीवन में फूलों की भरमार आई है, वसंत ऋतु खिली है, जीवन में नया उत्साह नया जोश जागा है जिसकीसहायतासे युवा पीढ़ी को जागरूक करनेके संकल्प को पूरा करूँगा।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक वसंत भाग-3में संकलित कविता ‘ध्वनि’ सेहैंकविता के कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निरालाजी हैं।इस कविता में कवि का जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण दिखाया गया है।कवि का यह मानना है कि हमें जीवन के प्रति आशावादी रहना चाहिए अपनी उम्मीद को नहीं छोड़ना चाहिए और पूरी सकारत्मक के साथ और पूरे जोश और उत्साह के साथ जीवन का आनन्द उठाना चाहिए।

व्याख्या– कविमानते हैं की उनका अंत अभी नहीं होगा, क्योंकि अभी-अभी कवि के जीवन के अमृत रूपी वन में वसंत रूपी यौवन आया है। अतः अभी उनका अंत नहीं होगा।कवि मानते हैं कि उनका अंत अभी नहीं होगा, क्योंकि वह आशावादी है जैसा कि हमने जाना और इस गुण की वजह से वह यह मानते हैं की अभी उनका अंत नहीं होगा जब तक वे अपने उद्देश्य की पूर्ती नहीं कर लेते। क्योंकि अभी कवि के जीवन में अमृत रूपी वन में वसंत रूपी यौवन आया है। अर्थात् एक नये उत्साह और जोश का आगामन हुआ है उनके जीवन में, फिर से वसंत ऋतु में चारों तरफ फूलों की भरमार और उनकी खुशबु फैली है जोकि बहुत ही सुन्दर लगती है। अतः अभी उनका अंत नहीं होगा। यही कारण है जैसा कि अभी उत्साह जोश की अधिकता है तो अभी यह कुछ दिन ठहरेगा और इसका अंत अभी नहीं होगा।


2. हरे-हरे ये पात, डालियाँ, कलियाँ, कोमल गात। मैं ही अपना स्वप्न – मृदुल-कर फेरूँगा निद्रित कलियों पर जगा एक प्रत्यूष मनोहर।

पात: पत्ता गात: शरीर स्वप्न: सपना मृदुल-कर: हाथ कलियों: थोड़ी खिली कलियाँ प्रत्यूष: सवेरा मनोहर: सुन्दर

जैसा कि वसंत ऋतु आई है प्रकृति में, और पेड़ पौधों पर हरे-हरे पत्तों पर और नए-नए फूलों की भरमार है। सभी पेड़ों पौधों की डालियाँ लहलहा रही हैं, नई-नई कलियाँ खिली हैं और नए नए पत्ते बहुत शोभामान लग रही है। कवि कहते हैं कि यह मेरा सपना जोकि युवा पीढ़ी को जागरूक करना है मैं अपने कोमल हाथों से, मैं अपना सपना स्वंय साकर करना चाहता हूँ अर्थात् प्रकृति जिस तरह से पूरे वातावरण में शोभा प्रदान करती है और एक नए जोश उत्साह का आगमान करती है, सूर्य के आगमान के साथ प्रकृति में नए-नए फूल खिलते हैं और एक नया उत्साह भर देते हैं उसी तरह से कवि कह रहें है कि मैं अपने हाथों से अपना जो उद्देश्य है युवा पीढ़ी को जागरूक करने का स्वंय पूरा करूँगा।

कवि कहते हैं कि यहाँ जो युवा पीढ़ी है जो आलस से भरी हुई है, नींद में सोई हुई है उन्हें जागरित करना चाहते हैं । इन कोमल कलियों पर मैं अपने कोमल हाथ फेरूँगा अर्थात् उन्हें सही दिशा में भेज दूँगा और एक नया प्ररेणा स्त्रोत दूँगा, जिससे वह जागरूक हो जाएँगे और एक सही राह पर चलेंगे।

इस तरह से मैं इस जीवन में, पूरे संसार में, समाज में, एक नया सुन्दर सवेरे का आगमन करूँगा जोकि मेरा उद्देश्य है युवा पीढ़ी को जागरित कर, पूरे समाज में सकारत्मकता लाऊँगा।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक वसंत भाग-3 में संकलित कविता ध्वनि से हैं। कविता के कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी हैं। उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने प्रकृति की सुंदरता से मनुष्य के मन के भाव कोमल और सुकुमार बन जाते हैं यह बताया है।मनुष्य प्रकृति से प्रेरणा लेता है और उसमें नए उत्साह जोश का जग होता है यही सब कवि ने बताया है।


व्याख्या – कवि प्रकृति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि चारों ओर वृक्ष हरे भरे हैं,पौधों पर कलियाँ खिली हैं जो अभी तक सो रहीं हैं।कवि कहते हैं मैं सूर्य को लाकर इन अलसाई कलियों को जगाऊंगा। पंक्तियों के माध्यम से कवि यह भी कहना चाह रहें हैं कि निराश और जिंदगी से हारे लोगो को मैं जीवन दान दूँगा।कवि प्रकृति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि चारों ओर वृक्ष, हरे भरे हैंए पौधों पर कलियाँ खिली हैं जो अभी तक सो रहीं हैं। कवि कहते हैं मैं सूर्य को लाकर इन अलसाई कलियों को जगाऊंगा। – इसका अर्थ यह है कि वह युवा पीढ़ी में नई प्रेरणा और उत्साह का संचार करेंगे और उन्हें जागरित करेंगे। जिस प्रकार सूर्य के आने से प्रकृति में एक नया जोश और उत्साह छा जाता है और चारों ओर हरियाली और फूलों की नई नई खुशबु फैल जाती है। पंक्तियों के माध्यम से कवि यह भी कहना चाह रहें हैं कि निराश और जिंदगी से हारे लोगो को मैं जीवन दान दूँगा। जिन लोगों को निराशा घेर लिया है अर्थात् वो हार मान चुके है जीवन से मैं उन लोगों से जीवन में भी बाहार ला दूँगा जिस तरह से फूलों की बाहार वसंत ऋतु में चारों ओर फैली हुई है इस तरह से मैं एक नया जीवन दूँगा।


3. पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं, अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं द्वार दिखा दूँगा फिर उनको। हैं मेरे वे जहाँ अनंत – अभी न होगा मेरा अंत।

पुष्प-पुष्प: फूल तंद्रालस: नींद से अलसाया हुआ लालसा: लालच नव: नये अमृत: सुधा सहर्ष: ख़ुशी के साथ सींच: सिंचाई द्वार: दरवाज़ा अनंत: जिसका कभी अंत न हो अंत: खत्म

युवा पीढ़ी जोकि अभी तक सोई हुई हैं, आलस ने उन्हें घेरा हुआ है, मैं उसके आलस के लालच को दूर कर दूँगा। मैं इस युवा पीढ़ी को एक नया जोश और उत्साह दूँगा। और जोकि मैंने जीवन के वास्तविकता और इसकी अमृत को जाना है वैसा नया रूप मैं इन सबको दूँगा अर्थात् नई युवा पीढ़ी को मैं नये जोश और उत्साह के साथ और जीवन के इस अमृत के साथ, जो जीवन की वास्तविक सुख है और उसको किस तरह से जिया जा सकता है यह सब ज्ञान मैं नई युवा पीढ़ी को दूँगा। कवि प्रसन्नता के साथ यह सब करना चाहते हैं, जिस तरह से हम पौधों को सींचते है और वह बहुत हरा-भरा हो जाते हैं, इस तरह से युवा पीढ़ी के अन्दर भी नये जोश और उत्साह संचार कर देंगे और वह युवा पीढ़ी जागरित होकर अपने जीवन का भरपूर आनंद ले सकती है कवि इस कविता के द्वारा प्रकृति का उदाहरण लेकर प्रेरणा देना चाहते है।सही रास्ता दिखा दूँगा उनको ताकि वह सही रास्ते पर चल सके। कहते हैं इस तरह से इस जीवन का कभी अंत नहीं होगा, जहाँ तक मैं चाहता हूँ युवा पीढ़ी पूरे उत्साह जोश के साथ जीवन का आनंद ले। जब तक मैं अपने उदेद्श्य को पूरा नहीं कर लूँगा तब तक मेरा अंत नहीं होगा। ऐसा कवि का मानना है क्योंकि कवि बहुत ही आशावादी विचारों के हैं और अपने संकल्प जोकि युवा पीढ़ी के लिए लिया है, अपने ही हाथों से पूरा करना चाहते हैं यह उनका सपना है कि युवा पीढ़ी को जागरित करें और उसके आलस को दूर करें और एक नये जोश और उत्साह का संचार उनके जीवन में करें।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक वसंत भाग-3 मेंसंकलित कविता ‘ध्वनि’ से हैं। कविता के कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी हैं। उपयुक्त पंक्तियों में कवि जीवन से आलस को दूर भगाने की बात कहते हैं तथा कवि कर्म का परिचय देते हैं।

व्याख्या – प्रस्तुत पद्यांश में कवि प्रकृति के द्वारा निराश-हताश लोगों के जीवन को खुशियों से भरना चाहते हैं। वे कहते हैं-मैं एक-एक फूल से आलस्य को खींच लूँगा अर्थात मैं आलस में पड़े युवकों के मन में नए जीवन का अमृत प्रसन्नता से भर दूँगा।कवि प्रकृति के द्वारा निराश-हताश लोगों के जीवन को खुशियों को भरना देना चाहते हैं। कवि खुशी-खुशी से यह कार्य करना चाहते हैं और हर युवा जाति के भीतर एक नया जोश भर देना चाहते हैं उनके आलस को दूर कर देना चाहते हैं। जिससे प्रेत्यक मानव सुखमय जीवन जी सके। अर्थात् मनुष्य को जीवन जीने कि कला सिखाना चाहते हैं ताकि वे प्रसन्नतापूवर्क अपने जीवन में आए दुखों से पार हो सके और साहसपूवर्क जीवन जी सके। कवि का यह मानना है युवा पीढ़ी अब अपने आलस को दूर कर अगर परिश्रम करेगी तो वह र्स्वग को भी पा लेगें। जो ईश्वर को प्राप्त कर लेता है उसका अंत नहीं होता। इसका अर्थ यह है जो जीवन की जो वास्तविकता का आनंद उठते हैं खुशी-खुशी हर मुश्किल से पार पाते हैं उसका अंत कभी नहीं हो सकता। कवि कहते है जब तक वो नई पीढ़ी को राह नहीं दिखा, सही दिशा ज्ञान नहीं दे देगें तब तक उनका अंत नहीं हो सकता। क्योंकि कवि अभी जीवन में यह ठाना है कि जब तक वह युवा पीढ़ी को सही राह नहीं दिखा देगें तब तक उनका अंत नहीं होगा।




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