Meera ke pad Class 10 Hindi animated explanation
इस पाठ में निहित दोनों पदों में मीरा अपने प्रिय कृष्ण से प्रार्थना करती हैं। वह उन्हें विभिन्न प्रकार से प्रसन्न करने का प्रयास करती हैं। उनके अनुसार उनके कृष्ण हर तरह से समर्थ हैं। प्रथम पद में मीरा कृष्ण से अपनी रक्षा करने और कष्टों को दूर करने का आग्रह करती हैं। उनके अनुसार कृष्ण ने सदैव अपने भक्तों जैसे प्रह्लाद, द्रौपदी, बूढ़े गजराज आदि की सहायता तब की थी जब वह अत्यधिक कष्ट में थे। अत: उन्हें मीरा की रक्षा कर उनके कष्टों को दूर करना चाहिए। दूसरे पद में मीरा श्रीकृष्ण की सेवा करने और उनके नज़दीक रहने के उद्देश्य से उनकी सेविका बनकर साथ रखने का आग्रह करती हैं। उनके अनुसार वह कृष्ण की विभिन्न तरह से चाकरी करेगीं। ऐसा करने पर उन्हें श्रीकृष्ण का साथ मिलेगा। चाकरी के रूप में उन्हें श्री कृष्ण के रोज़ दर्शन हुआ करेंगे और वेतन के रूप में उनके नाम को सुमिरन करने का अवसर मिलेगा। यह संग्रह मीरा की सच्ची भक्ति और प्रेम का प्रतीक हैं।
पाठ व्याख्या :—
हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी , आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि , धरयो आप सरीर।
बूढ़तो गजराज राख्यो , काटी कुञ्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर , हरो म्हारी भीर।।
हरि = श्री कृष्ण
जन = भक्त
भीर = दुख- दर्द
लाज = इज्जत
चीर = साड़ी , कपडा
नरहरि = नरसिंह अवतार
सरीर = शरीर
गजराज = हाथियों का राजा
कुञ्जर = हाथी
काटी = मारना
लाल गिरधर = श्री कृष्ण
म्हारी = मेरी
व्याख्या :—
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से लिया गया है। इस पद की कवयित्री मीरा है। इसमें कवयित्री भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम को प्रदर्शित कर रही हैं और स्वयं की रक्षा करने को कह रही
हैं । पद में कवयित्री मीरा भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपने भक्त – प्रेम का वर्णन करते हुए कहती हैं कि प्रभु कृष्णा अपने भक्तों के सभी प्रकार के दुखों को हरने वाले हैं अर्थात दुखों का नाश करने वाले हैं। मीरा उदाहरण देते हुए कहती हैं कि जिस तरह आपने द्रोपदी की इज्जत को बचाया और साड़ी के कपडे को बढ़ाते चले गए ,जिस तरह आपने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का रूप धारण कर लिया और जिस तरह आपने हाथियों के राजा ऐरावत (भगवान इंद्र के वाहन) हाथी को मगरमच्छ के चंगुल से बचाया था ,हे ! श्री कृष्ण उसी तरह अपनी इस दासी अर्थात भक्त के भी सारे दुःख हर लो अर्थात मेरे सभी दुखों का नाश कर दो।
स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुंज गली में , गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसन पास्यूँ, सुमरन पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ , तीनूं बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे , गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में धेनु चरावे , मोहन मुरली वाला।
ऊँचा ऊँचा महल बनावँ बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ ,पहर कुसुम्बी साड़ी।
आधी रात प्रभु दरसण ,दीज्यो जमनाजी रे तीरा।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवड़ो घणो अधीरा।
शब्दार्थ
स्याम = श्री कृष्ण
चाकर = नौकर
रहस्यूँ = रह कर
नित = हमेशा
दरसण = दर्शन
जागीरी = जागीर , साम्राज्य
कुंज = संकरी
पीताम्बर = पीले वस्त्र
धेनु = गाय
बारी = बगीचा
पहर = पहन कर
तीरा = किनारा
अधीरा = व्याकुल होना
प्रस्तुत पद हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इस पद की कवयित्री मीरा है। इस पद में मीरा श्री कृष्ण के प्रति अपने प्रेम का वर्णन कर रही है और श्री कृष्ण के दर्शन के लिए वह कितनी व्याकुल है इसे बता रही हैं ।
व्याख्या :—
इस पद में कवयित्री मीरा श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति की भावना को दर्शाते हुए कहती हैं कि हे !श्री कृष्ण मुझे अपना नौकर बना कर रखो ताकि मैं हमेशा तुम्हारे नजदीक रह सकूं अर्थात मीरा हर समय श्री कृष्ण के नजदीक रहना चाहती है फिर चाहे नौकर बन कर ही क्यों न रहना पड़े। मीरा कहती हैं कि नौकर बनकर मैं बगीचा लगाउंगी ताकि सुबह उठ कर रोज मुझे आपके दर्शन मिल सके । मीरा कहती हैं कि वृन्दावन की संकरी गलियों में मैं अपने स्वामी की सभी लीलाओं का गुणगान करुँगी। मीरा के अनुसार नौकर बनकर उन्हें तीन फायदे होंगे पहला – उन्हें हमेशा कृष्ण के दर्शन प्राप्त होंगे , दूसरा- उन्हें अपने प्रिय की याद नहीं सताएगी और तीसरा- उनकी भाव भक्ति का साम्राज्य बढ़ता हीं जायेगा।
मीरा श्री कृष्ण के रूप का बखान करते हुए कहती हैं कि श्री कृष्ण ने पीले वस्त्र धारण किये हुए हैं ,सर पर मोर के पंखों का मुकुट विराजमान है और गले में वैजन्ती फूल की माला को वे धारण किए हुए हैं । श्री कृष्ण का यह रूप बहुत हीं मनोहर और आकर्षक लग रहा है।
वृन्दावन में गायों को चराते हुए जब वह मोहन बांसुरी बजाता है तो सबका मन मोह लेता है।
मीरा कहती हैं कि मैं बगीचों के बीच ही ऊँचे-ऊँचे महल बनाउंगी और कुसुम्बी साड़ी पहन कर अपने प्रिय के दर्शन करुँगी अर्थात श्री कृष्ण के दर्शन के लिए मैं साज श्रृंगार करुँगी। मीरा कहती हैं कि हे !मेरे प्रभु गिरधर स्वामी मेरा मन आपके दर्शन के लिए इतना बेचैन है कि मैं सुबह के होने का इन्तजार नहीं कर सकती। मीरा चाहती है की श्री कृष्ण आधी रात को ही जमुना नदी के किनारे उसे दर्शन दे दें।
पाठ के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 -: पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है ?
उत्तर -: पहले पद में मीरा हरि से अपनी पीड़ा हरने को कहती हैं वह कहती हैं कि जिस प्रकार हे ! प्रभु आप अपने सभी भक्तों के दुखों को हरते हो ,जैसे – द्रोपदी की लाज को भरी सभा में बचाने के लिए जिस प्रकार तुम साड़ी का कपड़ा बढ़ाते चले गए ,प्रह्लाद को जिस प्रकार बचाने के लिए तुमने नरसिंह का रूप धारण कर लिया और ऐरावत हाथी को बचाने के लिए मगरमच्छ को मार दिया उसी प्रकार मेरे भी सारे दुखों को हर लो अर्थात सभी दुखों को समाप्त कर दो।
प्रश्न 1)मीरा के आराध्य देव कौन हैं ?
उत्तर) मीरा के आराध्य देव श्रीकृष्ण हैं|
प्रश्न 2)कृष्ण ने किसकी लाज बचाई थी?
उत्तर) कृष्ण ने दौपदी की लाज बचाई थी|
प्रश्न 3)भक्त की रक्षा हेतु भगवान ने कौन –सा अवतार लिया था?
उत्तर) भक्त की रक्षा हेतु भगवान ने नरसिंह अवतार लिया था |
प्रश्न 4)मीरा के पदों में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
उत्तर) मीरा के पदों में मुख्यतः राजस्थानी भाषा का प्रयोग हुआ है जो भावों की अभिव्यक्ति में सक्षम है |
प्रश्न 5)‘भाव भगती’ में कौन –सा अलंकार प्रयुक्त हुआ है?
उत्तर) ‘भाव भगती ‘में अनुप्रास अलंकार प्रयुक्त हुआ है|
प्रश्न 6)मीरा अपने प्रभु की क्या बनना चाहती है ?
उत्तर) मीरा अपने प्रभु की चाकर बनना चाहती है ,ताकि वह उनकी सेवा कर सके |
प्रश्न 7)गजराज को किस मुश्किल से भगवान ने बचाया था ?
उत्तर) गजराज जब मगरमच्छ के चंगुल में बुरी तरह फंस कर डूबने लगे थे, तब प्रभु ने मगर को मारकर उन्हें बचाया था|
प्रश्न 8) मीरा क्या पहनकर भगवान के दर्शन करेंगी ?
उत्तर) अपने प्रभु के दर्शन मीरा केसरिया रंग की साड़ी पहनकर करेगी ,जोकि सन्यासियों का रंग है, अर्थात मीरा अपने प्रभु के लिए संन्यास ले लेंगी|
प्रश्न 9)चाकरी सुमिरन और भाव भक्ति के बदले मीरा को क्या प्राप्त होगा ?
उत्तर) अपने प्रभु की चाकरी के बदले में मीरा को अपने प्रभु के दर्शन प्राप्त होंगे , खर्चे के लिए सुमिरन प्राप्त होगा और भक्ति रूपी जागीर प्राप्त होगी|
प्रश्न 10)मीरा ने स्वयं को किस रूप में देखा है ?
उत्तर) मीरा ने स्वयं को दासी रूप में देखा है |
प्रश्न 11) आधी रात के वक्त मीरा को किस के दर्शन होंगे और कहां ?
उत्तर) आधी रात को यमुना नदी के तट परमीरा को अपने प्रभु श्री कृष्ण के दर्शन होंगे|
प्रश्न 12)मीरा द्वारा भाव –भक्ति को जागीर कहे जाने का कारण बताइए|
उत्तर) मीराबाई द्वारा कृष्ण को जागीर कहे जाने का कारण है कि मीरा के लिए कृष्ण ही सबसे बड़ी पूँजी हैं | यदि उन्हें पाना है तो भक्ति मार्ग अपनाना ही होगा|
प्रश्न 13) मीराबाई श्रीकृष्ण से मिलने कहाँ और कैसे जाना चाहती हैं?
उत्तर) मीराबाई,श्रीकृष्ण से मिलने आधी रात को यमुना नदी के किनारे कुसुंबी साड़ी पहनकर जाना चाहती है, क्योंकि उनका मन श्रीकृष्ण से मिलने के लिये अत्यंत व्याकुल हो रहा है |
प्रश्न 14)मीरा ने अपने पदों में प्रभु को क्या-क्या नाम दिए हैं?
उत्तर) मीरा ने अपने आराध्य देव श्रीकृष्ण को अनेक नामों से संबोधित किया है:जैसे–हरि,गिरधर,स्याम,गिरधारी, गोविन्द,मोहन,मुरलीवाला,साँवरिया,नागर इत्यादि|
प्रश्न 15)मीरा का हृदय क्यों अधीर है ?
उत्तर) मीरा का हृदय अपने प्रभु के दर्शन पाने के लिए अधीर है | मीरा प्रभु के दर्शन के लिए इतनी अधीर है कि उनकी नौकर तक बनने के लिए तैयार है| मीरा हर वह कार्य करने के लिए तैयार है,जिसके लिए समाज उन्हें उलाहना देगा |
प्रश्न 16)मीरा श्री कृष्ण के लिए बाग क्यों लगाना चाहती
है ?
उत्तर) श्री कृष्ण बाग में मुरली बजाते हैं इसलिए मीराबाई श्री कृष्ण के लिए बगीचा लगाएंगी, जिस से रोज सुबह उठकर उन्हें अपने प्रभु के दर्शन हो सके|
प्रश्न 17)मीरा कहां और किसकी लीला गाने की बात कर रही है ?
उत्तर) मीरा वृंदावन की गलियों में अपने प्रभु श्री कृष्ण की लीला का गान करना चाहती है वह अपना पूरा जीवन अपने प्रभु को समर्पित करना चाहती हैं|
प्रश्न 18)मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तर) मीराबाई ने कृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहा है कि उनके मस्तक पर मोर के पंखों से बना सुंदर मुकुट शोभायमान हो रहा है |उनके गले में वनफूलों से बनी हुई माला सुशोभित हो रही है |वे पीले वस्त्र पहनकर मुरली बजाते हुए गाय चरा रहे हैं |
प्रश्न 19)पहले पद में मीरा ने प्रभु से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है ?
उत्तर) मीरा स्वयं को हरि का जन बताती हैं, इसलिए प्रभु को उनकी पीड़ा हरनी चाहिए |मीरा प्रभु को उनके उस रूप का स्मरण कराती हैं ,जिसमे वे रक्षक बनकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उनके कष्ट हरते हैं | उदाहरण के लिए: द्रौपदी की लाज बचाना,भक्त प्रह्लाद की रक्षा करना,डूबते हुए हाथी को बचाना आदि| मीरा ने हरि से अपना उद्धार करने की गुहार लगाई है |
प्रश्न 20)दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती हैं?
उत्तर) दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी इसलिए करना चाहती हैं,क्योंकि वह दिन-रात कृष्ण के पास रहकर उनके दर्शन करना चाहती हैं |वह उनकी भक्त हैं|वह उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनके बाग-बगीचे में काम करना चाहती हैं,ताकि श्रीकृष्ण यह सब देखकर प्रसन्न हो सकें और मीरा को उनकी कृपा प्राप्त हो सके |
प्रश्न 21)निम्नलिखित पंक्तियों का भाव-सौंदर्य स्पष्ट
कीजिए |
हरि आप हरो जन री भीर|
द्रोपदी री लाज राखी,आप बढ़ायो चीर |
भगत कारण रूप नरहरि,धर् यो आप सरीर |
उत्तर) मीराबाई श्रीकृष्ण से प्रार्थना करती हैं कि हे ईश्वर!केवल आप ही इस दासी के कष्टों को दूर कर सकते हैं|आपने ही द्रौपदी की साड़ी को बढ़ाकर उसे अपमानित होने से बचाया था|आपने नरसिंह अवतार लेकर प्रह्लाद को बचाया | आपने डूबते हुए हाथी को बचाया |प्रस्तुत पंक्तियों में मीरा का दास्य-भाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है |प्रस्तुत पंक्तियाँ गेयात्मक हैं |
प्रश्न 22) कृष्ण की चाकरी करने से मीरा को कौन–कौन से तीन लाभ मिल सकेंगे?
उत्तर) कृष्ण की चाकरी करने से मीरा को तीन लाभ होंगे|वह कृष्ण के नित्य दर्शन पा सकेंगी|वह चाहती हैं कि वृन्दावन की गलियों में कृष्ण की लीला का यशोगान करें |उनकी तीसरी और अंतिम इच्छा है कि किसी प्रकार उन्हें श्रीकृष्ण की भक्ति प्राप्त हो जाए |अपने इन्हीं तीन इच्छाओं को उन्होंने तीन लाभ बताया है|
प्रश्न 23) मीरा ने अपने पदों में प्रभु के प्रति अपनी भावनाऍ कैसे व्यक्त की हैं?
उत्तर) मीरा ने अपने पदों में अपने आराध्य देव के प्रति अनन्य भक्ति-भाव को व्यक्त किया है |उनके गिरधर गोपाल हमेशा अपने भक्तों पर दया-भाव रखते हैं| मीरा भी इसी दया –भाव को पाने की आकांक्षा रखती हैं इसलिए वे दासी बनने को भी तैयार हैं|श्रीकृष्ण के रूप –माधुर्य का वर्णन करते हुए वे भाव-विभोर हो जाती हैं| उन्होंने अपने पदों में कृष्ण से मिलने की अधीरता को व्यक्त किया है जो भक्त की स्थिति को दर्शाती है |
प्रश्न 24)मीरा ऊँचे-ऊँचे महलों और बीच –बीच में बगिया की कल्पना क्यों की है?
उत्तर) मीरा ऊँचे-ऊँचे महलों और बीच-बीच में बगिया की कल्पना इसलिए करती हैं ,क्योंकि वृन्दावन में कृष्ण का भव्य और ऊँचा महल है|वह इस महल के बीचों –बीच सुंदर फूलों से सजी फुलवारी बनाना चाहती हैं ,ताकि जब कृष्ण वहाँ आएँ तो इन फूलों से सजी फुलवारी को देखकर खुश हो जाएँ और मीरा उनके इस मोहित कर देने वाले रूप के दर्शन कर सकें |
प्रश्न 25)मीराबाई कौन-कौन से तर्क देकर श्रीकृष्ण से पीर हरने की प्रार्थना कर रही है ?
उत्तर) मीराबाई द्रोपदी, गजराज तथा भक्त प्रह्लाद का उदहारण देकर अपनी पीर हरने की प्रार्थना कर रही हैं| वे कहती हैं जिस प्रकार आपने अपने इन भक्तों को कष्टों से बचाया, उसी प्रकार मैं भी आपकी भक्त हूँ,आप मेरे भी कष्टों को दूर करें |
प्रश्न 26)मीराबाई अपने आराध्य देव की सेविका बनना चाहती है | इसके माध्यम से वह क्या संदेश देना चाहती
हैं ?
उत्तर) मीराबाई अपने आराध्य श्रीकृष्ण की सेविका बनने की इच्छा प्रकट करती हैं,क्योकि मीरा द्वारा रचित पदों में उनकी दास्य भावना स्पष्ट रूप से झलकती है |इसके माध्यम से वह यह संदेश देना चाहती हैं कि एक सच्चे भक्त को अपने प्रभु या इष्ट की सेवा करनी चाहिए |इससे मनुष्य अहंकार से दूर रहता है और प्रभु से उसकी निकटता बढती जाती है |
प्रश्न 27)मीरा के पदों में भक्ति-भावना निहित है –स्पष्ट कीजिए |
उत्तर) मीराबाई श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त हैं |उन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति में अपना सारा जीवन बिता दिया |मीरा ने अपने आराध्यदेव का भरपूर के गुणों का भरपूर बखान किया |उनकी भक्ति में समर्पण की भावना है |उनके काव्य में अनुभूति की गहराई है |वह श्रीकृष्ण को अपना आराध्य भी मानती हैं तथा प्रियतम भी |वह प्रिया की भांति भी मिलना चाहती हैं तथा भक्त की भांति भी |वह कृष्ण की सेवा में समर्पित हैं |वह कृष्ण के दर्शन की तीव्र अभिलाषा रखती हैं |मीरा के अनुसार आराध्य के दर्शन,स्मरण तथा भक्ति ,ये तीनों ही सच्चे भक्तों की जागीर होती है|उन्होंने कृष्ण को अपना सर्वस्व मानकर अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया |मीरा की रचनाओं में भक्ति–भाव प्राधान्य है|
प्रश्न 28)मीराबाई के काव्य में विरह की अनुभूति चरम पर है-स्पष्ट कीजिए |
उत्तर) मीराबाई का रचना संसार ईश्वरीय प्रेम के दोनों पक्षों –संयोग तथा वियोग पर आधारित है |यदि प्रेम को किसी कसौटी पर परखा जा सकता है,तो वह है विरह वेदना की अनुभूति |वह श्रीकृष्ण के विरह में इतनी व्याकुल है कि कुछ भी करने को तैयार है |वह अर्ध-रात्रि के समय श्री कृष्ण से यमुना नदी के किनारे मिलने की प्रार्थना करती है |यहाँ तक कि वह उनकी सेविका बनने को भी तैयार हैं|मीरा कृष्ण के दर्शन के लिए कुसुम्बी साड़ी पहनकर भाव-भक्ति को अपनी सबसे बड़ी जागीर मानने की अभिलाषिणी हैं|इस प्रकार कहा जा सकता है कि मीरा के काव्य में विरह वेदना अपनी चरम स्थिति में है |
प्रश्न 29)निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए |
श्याम म्हाने चाकर राखो जी
गिरधारी लाला म्हाने चाकर राखो जी
चाकर रहस्य बाघ लगा क्यों नित उठ दर्शन वासियों
बिंद्राबन की कुंज गली में गोविंद लीला गास्यूं
चाकरी में दरसण पास्यूं सुमिरन पास्यूं खरची
भाव भगति जागीरी पास्यूं तीनू बाता सरसि |
उत्तर) मीरा अपने प्रभु श्री कृष्ण से से विनती करते हुए कहती है कि वे उन्हें अपना नौकर बना ले| नौकर बन कर मीरा अपने प्रभु के लिए बाग लगाएंगी ताकि उन्हें सुबह उठते ही अपने प्रभु के दर्शन प्राप्त हो सके| वृंदावन की गलियों में अपने प्रभु गोविंद की लीला का गान करना चाहती है | चाकरी में रहते हुए दर्शन को वेतन स्वरूप पाना चाहती हैं और सुमिरन उनका खर्चा होगा| भावभक्ति स्वरूप जागीर पाना चाहती है और यह तीनों ही बातें सत्य है|
प्रश्न 30)पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है ?
उत्तर) पहले पद में मीरा अपने प्रभु से विनती करते हुए कहती है कि आप जन- जन की पीर हर लो |आपने ही तो द्रौपदी का चीर बढ़ा कर उस की लाज बचाई थी, आपने ही तो अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा हेतु नरसिंह का रूप धारण किया था, आपने ही तो डूबते हुए गजराज की रक्षा के लिए मगरमच्छ को मारा था| जिस तरह आपने अपने उन भक्तों की रक्षा की, उसी तरह हे प्रभु आप मेरे दी संकट हर लीजिए|
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