धर्म की आड़, Class 9,Dharam Ki Aad
प्रश्न-अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए–
1) आज धर्म के नाम पर क्या-क्या हो रहा है?
उत्तर) धर्म के नाम पर उत्पात किए जाते हैं, लोगों को भड़काया जाता है और आपसी झगड़े करवाए जाते हैं।
2. धर्म के व्यापार को रोकने के लिए क्या उद्योग होने चाहिए?
उत्तर) धर्म के व्यापार को रोकने के लिए स्वार्थी लोगों के बहकावे में नहीं आना चाहिए लोगों को अपने बुद्धि और विवेक से काम लेते हुए समाज में हो रहे धार्मिक उन्माद का विरोध करना चाहिए।
3. लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का कौन सा दिन सबसे बुरा था?
उत्तर) आज़ादी के आंदोलन के दौरान सबसे बुरा समय वह था जब स्वाधीनता के लिए खिलाफ़त, मुँल्ला-मौलवियों और धर्माचार्यों को आवश्यकता से अधिक महत्त्व दिया गया।
4. साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में क्या बात अच्छी तरह घर कर बैठी है?
उत्तर) साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में यह बात घर कर बैठी है कि धर्म और ईमान की रक्षा में जान देना उचित है।
5. धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या हैं?
उत्तर) धर्म के स्पष्ट चिह्न शुद्ध आचरण, सदाचार अच्छा व्यवहार है ।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए–
1. चलते-पुरज़े लोग धर्म के नाम पर क्या करते हैं?
उत्तर) चलते-पुरज़े लोग अपनी स्वार्थ की पूर्ति एवं अपनी महत्ता बनाए रखने के लिए भोले-भाले लोगों की शक्तियों और उत्साह का दुरुपयोग करते हैं। वे धार्मिक उन्माद फैलाकर अपना काम निकालते हैं।
2. चालाक लोग साधारण आदमी की किस अवस्था का लाभ उठाते हैं?
उत्तर) चालाक लोग साधारण आदमी की धर्म के प्रति अटूट आस्था का लाभ उठाते हैं। वे अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए ऐसे आस्थावान धार्मिक लोगों को मरने-मारने के लिए भड़काते हैं और फिर मरने के लिए छोड़ देते हैं।
3. आनेवाला समय किस प्रकार के धर्म को नहीं टिकने देगा?
उत्तर) कुछ लोग यह सोचते हैं कि दो घंटे की पूजा-पाठ और पाँचों वक्त की नमाज पढ़कर हर तरह का गलत काम करने के लिए वे स्वतंत्र हैं तो आने वाला समय और नई पीढ़ी ऐसे धर्म को टिकने नहीं देगी ।
4. कौन-सा कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा?
उत्तर) देश की आजादी के लिए किए जा रहे प्रयासों में मुल्ला, मौलवी और धर्म के आचार्यों की सहभागिता को देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा। लेखक के अनुसार, गलत धार्मिक व्यवहार और सोच से स्वतंत्रता की भावना पर चोट पहुँचती है।
5. पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों में क्या अंतर है?
उत्तर) पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों के बीच काफी विषमता है। वहाँ धन का लालच दिखाकर गरीबों का शोषण किया जाता। है। गरीबों की कमाई के शोषण से अमीर और अमीर, तथा गरीब अधिक गरीब होते जा रहे हैं।
6. कौन-से लोग धार्मिक लोगों से अधिक अच्छे हैं?
उत्तर) नास्तिक लोग, जो किसी धर्म को नहीं मानते, वे धार्मिक लोगों से अच्छे हैं। उनका आचरण अच्छा है। वे सदा सुख-दुख में एक दूसरे का साथ देते हैं। वे धर्म और ईश्वर के नाम पर लोगों की आपस में लड़ाई नहीं करवाते हैं।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए–
1. धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को कैसे रोका जा सकता है?
उत्तर) धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को रोकने के लिए दृढ़-निश्चय के साथ साहसपूर्ण कदम उठाने होंगे । हमें साधारण और सीधे-साधे लोगों को धर्म के नाम पर भड़काने वाले लोगों के बारे में सचेत करना होगा। वैसे लोगों की असलियत बतानी होगी जो धर्म के नाम पर दंगे-फसाद करवाते हैं। लोगों को धर्म के नाम पर भड़कने के बजाए बुद्धि से काम लेने के लिए प्रेरित करना होगा। इसके अलावा धार्मिक ढोंग एवं आडंबरों से भी लोगों को बचाना होगा।
2. ‘बुद्धि पर मार’ के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं?
उत्तर) बुद्धि की मार से लेखक का अर्थ है कि लोगों की बुद्धि में ऐसे विचार भरना कि वे उनके अनुसार काम करें। धर्म के नाम पर, ईमान के नाम पर लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काया जाता है। लोगों की बुद्धि पर परदा डाल दिया जाता है। उनके मन में दूसरे धर्म के विरुद्ध जहर भरा जाता है। इसका उद्देश्य खुद का प्रभुत्व बढ़ाना होता है।
3. लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी होनी चाहिए?
उत्तर) लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना इस प्रकार की होनी चाहिए जिसमें दूसरों के कल्याण की भावना निहित हो। और यह भावना पवित्र आचरण और मनुष्यता से भरपूर होनी चाहिए। इसके अलावा प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को चुनने, पूजा-पाठ की विधि अपनाने की छूट होनी चाहिए। इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। धार्मिक भावना पशुता को समाप्त करने के साथ मनुष्यता को बढ़ाने वाली होनी चाहिए।
4. महात्मा गांधी के धर्म-संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर) महात्मा गाँधी अपने जीवन में धर्म को महत्त्वपूर्ण स्थान देते थे। वे एक कदम भी धर्म के विरुद्ध नहीं चलते थे। परंतु उनके लिए धर्म का अर्थ ऊँचे विचार तथा मन की उदारता था । वे ‘कर्तव्य’ पक्ष पर जोर देते थे। वे धर्म के नाम पर हिंदू-मुसलमान की कट्टरता और उन्हें लड़वाने के फेर में नहीं पड़ते थे। एक प्रकार से कर्तव्य ही उनके लिए धर्म था।
5. सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है?
उत्तर) सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना इसलिए ज़रूरी है कि पूजा-पाठ करके, नमाज़ पढ़कर हम दूसरों का अहित करने, बेईमानी करने के लिए आज़ाद नहीं हो सकते। आने वाला समय और युवा पीढ़ी ऐसे धर्म को बिल्कुल भी नहीं टिकने देगी । ऐसे में आवश्यक है कि हम अपना स्वार्थपूर्ण आचरण त्यागकर दूसरों का कल्याण करने वाला पवित्र एवं शुद्ध आचरण को अपनाएँ। आचरण में शुद्धता के बिना धर्म के नाम पर हम कुछ भी करें, सब व्यर्थ है।
(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए–
1. उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है।
उत्तर) उक्त कथन के द्वारा लेखक बताना चाहते हैं कि साधारण आदमी में सोचने और समझने की अधिक शक्ति नहीं होती। वह अपने धर्म, संप्रदाय के प्रति अंधी श्रद्धा रखता है। उसे धर्म के नाम पर जिस काम के लिए कहा जाता है, वह उसी काम को करने लगता है। उसमें अच्छा-बुरा सोचने-विचारने की शक्ति नहीं होती।
2. यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।
उत्तर) यहाँ इस शब्द से ही लेखक का तात्पर्य भारत के उन कुछ लोगों से है जो अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए दूसरे लोगों का बौधिक-शोषण करते हैं। वे धर्म के नाम पर तरह तरह की विरोधी बातों को साधारण लोगों के दिमाग में भरते हैं और धर्म के नाम पर उन्हें गुमराह कर स्वयं उनका मसीहा बन जाते हैं। इन धर्माध लोगों को धर्म के नाम पर आसानी से लड़ाया और भिड़ाया जा सकता है। कुछ चालाक लोग इनकी धार्मिक भावनाओं को भड़काकर अपने स्वार्थ की पूर्ति करते हैं।
3. अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।
उत्तर) इस कथन के द्वारा लेखक कहना चाहते हैं कि आनेवाले समय में किसी मनुष्य के पूजा-पाठ के आधार पर उसे सम्मान नहीं मिलेगा बल्कि सत्य आचरण और सदाचार से अच्छे इंसान की पहचान की जाएगी।
4. तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो!
उत्तर) स्वयं को धार्मिक और धर्म का ठेकेदार कहने वाले लोग साधारण लोगों को भड़काकर और लड़वाकर अपना स्वार्थ पूरा करते हैं। ऐसे लोग पूजा-पाठ, नमाज़ आदि के माध्यम से स्वयं को सबसे बड़े आस्तिक समझते हैं। ईश्वर भी ऐसे लोगों से कहते हैं कि :—तुम मुझे मानो या न मानो पर अपने आचरण को सुधारो, गरीब लोगों को लड़ाना-भिड़ाना बंद करके उनके भले की सोचो। अपनी इंसानियत को जगाओ। अपनी स्वार्थ-पूर्ति की और पशु-प्रवृत्ति की भावना को त्यागो और अच्छे आदमी बनकर अच्छे काम करो।
भाषा-अध्ययन
1. उदाहरण के अनुसार शब्दों के विपरीतार्थक लिखिए–
सुगम - दुर्गम
धर्म - ....अधर्म ....
ईमान - ..बेईमान ....
साधारण - ..असाधारण .......
स्वार्थ - ...परमार्थ ...
दुरुपयोग - ...सदुपयोग ...
नियंत्रित - .....अनियंत्रित ........
स्वाधीनता - .....पराधीनता ...
2. निम्नलिखित उपसर्गों का प्रयोग करके दो-दो शब्द बनाइए–
ला, बिला, बे, बद, ना, खुश, हर, गैर
ला – लापता, लावारिस
ना – नासमझ, नालायक
बिला – बिलावज़ह, बिलानागा
खुश – खुशकिस्मत, खुशबू
बद – बदनसीब, बदतमीज़
हर – हरवक्त, हर दिन
बे – बेवफा, बेरहम
गैर – गैरहाजिर, गैरकानूनी
3. उदाहरण के अनुसार ‘त्व’ प्रत्यय लगाकर पाँच शब्द बनाइए–
उदाहरणः देव + त्व = देवत्व
व्यक्ति + त्व = व्यक्तित्व
अपना + त्व = अपनत्व
देव + त्व = देवत्व
मनुष्य + त्व = मनुष्यत्व
गुरु + त्व = गुरुच
4. निम्नलिखित उदाहरण को पढ़कर पाठ में आए संयुक्त शब्दों को छाँटकर लिखिए–
उदाहरणः चलते-पुरज़े
पढ़े – लिखे
इने – गिने
सुख – दुख
पूजा – पाठ
5. ‘भी’ का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए–
उदाहरणः आज मुझे बाज़ार होते हुए अस्पताल भी जाना है।
1)यहाँ आम के साथ नीम के भी पौधे लगाना।
2)बाज़ार से फल के साथ सब्जियाँ भी लाना।
3)सुमन के साथ काव्या भी आएगी।
4)पूजा-पाठ के अलावा सदाचार भी सीखना चाहिए।
5)किसानों की समस्याएँ अभी भी ज्यों की त्यों हैं।
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