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पाठ-01 कबीर की साखियाँ Class 10 kabeer ki saakhiya

साखी क्या है या किसे कहते हैं?

‘साखी ‘ शब्द ‘ साक्षी ‘ इस शब्द का बदला हुआ रूप है, इसे तद्भव शब्द भी कहते हैं। 'साक्षी' यह शब्द साक्ष्य से बना है। जिसका अर्थ होता है -प्रत्यक्ष ज्ञान अर्थात वह ज्ञान जो सबको स्पष्ट दिखाई दे। प्राचीन काल से हीं प्रत्यक्ष ज्ञान गुरु के द्वारा शिष्य को दिया जाता रहा है। संतों के अनुसार समाज को समझने में अनुभव का ज्ञान या व्यवाहरिक ज्ञान ही महत्वपूर्ण होता है - शास्त्रों का ज्ञान जैसे वेद , पुराण इत्यादि का नहीं। कबीर जगह -जगह घूम कर प्रत्यक्ष ज्ञान को प्राप्त करते थे। इसलिए उनके अनुभव का ज्ञान काफी विस्तृत था। कबीर के द्वारा रचना की गई साखियों मे अवधि , राजस्थानी , भोजपुरी और पंजाबी भाषाओँ के शब्दों का स्पष्ट प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। इसी कारण उनकी भाषा को ‘पचमेल खिंचड़ी ‘ अर्थात अनेक भाषाओँ का मिश्रण ऐसा भी कहा जाता है। कबीर की भाषा को 'सधुक्क्ड़ी' (साधु की भाषा ) भी कहा जाता है।

‘ साखी ‘ एक प्रकार का दोहा छंद ही है जिसका लक्षण है 13 और 11 के विश्राम से 24 मात्रा अर्थात पहले व तीसरे चरण में 13 वर्ण व दूसरे व चौथे चरण में 11 वर्ण के मेल से 24 मात्राएँ। प्रस्तुत पाठ की साखियाँ सिद्ध करतीं हैं की सत्य और जीवन के व्यावहारिक ज्ञान को सामने रख कर हीं गुरु शिष्य को जीवन के ज्ञान की शिक्षा प्रदान करते है। यह शिक्षा जितनी अधिक प्रभावशाली होती है , उतनी ही अधिक याद भी रहती है ।



साखी की पाठ व्याख्या


1)ऐसी बाँणी बोलिये ,मन का आपा खोइ।

अपना तन सीतल करै ,औरन कौ सुख होइ।।


बाँणी = बोली

आपा = अहम्, अहंकार

खोइ =त्याग करना

तन = शरीर, गात

सीतल = शीतल, ठंडा

औरन = दूसरों को

होइ = होना


व्याख्या :— प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इस साखी के कवी ‘कबीरदास ‘जी है। साखी में कबीर ने मीठी बोली बोलने और दूसरों को दुःख न देने की बात कही है। हमें अपने मन के अहंकार का त्याग कर ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिससे हमारा अपना तन-मन भी स्वस्थ रहे और हमारे बातों से दूसरों को भी किसी तरह का कष्ट न हो अर्थात दूसरे भी सुखी रहें ।


2)कस्तूरी कुंडली बसै ,मृग ढूँढै बन माँहि।

ऐसैं घटि- घटि राँम है , दुनियां देखै नाँहिं।।


कस्तूरी = मृगमद

कुंडली = नाभि

मृग = हिरण

बन = वन, जंगल

घटि - घटि = कण - कण


व्याख्या :—प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इसके कवी कबीरदास जी है। साखी में कबीर कहते है कि संसार के लोग उस हिरण के समान हो गए है जो कस्तूरी की प्राप्ति के लिए इधर से उधर भटकता रहता है उसी तरह लोग भी ईश्वर की प्राप्ति के लिए भटक रहे है।अर्थात जिस प्रकार एक हिरण कस्तूरी की खुशबु को जंगल में हर जगह ढूंढ़ता है जबकि वह सुगंध उसी की नाभि में विद्यमान होती है परन्तु वह इस बात से बेखबर होता है, उसी प्रकार संसार के कण- कण में ईश्वर का वास है और मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को देवालयों और तीर्थों में ढूंढ़ता है। कबीर जी कहते है कि अगर ईश्वर को ढूंढ़ना ही है तो अपने अंदर ढूंढो।


3)जब मैं था तब हरि नहीं ,अब हरि हैं मैं नांहि।

सब अँधियारा मिटी गया , जब दीपक देख्या माँहि।।


मैं = अहम् ( अहंकार )

हरि = परमेश्वर

अँधियारा = अंधकार

दीपक = दीया


व्याख्या :—प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। साखी में कबीर जी मन में अहम् या अहंकार के मिट जाने के बाद मन में परमेश्वर के वास की बात कहते है। अर्थात जब इस हृदय में ‘मैं ' अर्थात मेरा अहंकार था तब इसमें परमेश्वर का वास नहीं था परन्तु अब हृदय में अहंकार का कोई भाव नहीं है तो इसमें प्रभु का वास है। जब परमेश्वर नमक दीपक के दर्शन होते हैं तो अज्ञान रूपी अहंकार का विनाश हो जाता है ।


4)सुखिया सब संसार है , खायै अरु सोवै।

दुखिया दास कबीर है , जागै अरु रोवै।।


सुखिया = सुखी

अरु = अज्ञान रूपी अंधकार

सोवै = सोये हुए

दुखिया = दुःखी

रोवै = रो रहे

व्याख्या :—प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इस साखी के कवि कबीरदास जी है। साखी में कबीर दास जी अज्ञान रूपी अंधकार में सोये हुए मनुष्यों को देखकर दुःखी हैं और रो रहे है हैं। अर्थात संसार के लोग अज्ञान रूपी अंधकार में डूबे हुए हैं तथा अपनी मृत्यु से भी अंजान सो रहे हैं। ये सब देख कर कबीर दुखी हैं और वे रो रहे हैं। कबीर दास जी प्रभु को पाने लेने की आशा में हमेशा में जागते रहते हैं।


5)बिरह भुवंगम तन बसै , मंत्र न लागै कोइ।

राम बियोगी ना जिवै ,जिवै तो बौरा होइ।।


बिरह = बिछड़ने का गम

भुवंगम =भुजंग , सांप

बसै = वास करे

बियोगी = वियोग में, बिछड़ने में

जीवै =जिंदा रहे

बौरा = पागल


व्याख्या :—प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गयी है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। साखी में कबीर कहते हैं कि ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और अगर रह भी जाता है तो वह पागल हो जाता है।अर्थात जब मनुष्य के मन में अपनों के बिछड़ने का दुख सांप के समान लोटने लगता है तो उस पर कोई मन्त्र असर नहीं करता है और ना ही कोई दवा काम आती है। उसी तरह राम अर्थात ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और यदि वह जीवित रह भी जाता है तो उसकी स्थिति पागलों के समान हो जाती है।


6)निंदक नेड़ा राखिये , आँगणि कुटी बँधाइ।

बिन साबण पाँणीं बिना , निरमल करै सुभाइ।।


निंदक = निंदा करने वाला

नेड़ा = निकट

आँगणि = आँगन

साबण = साबुन

निरमल = साफ़

सुभाइ = स्वभाव

व्याख्या :— प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इस साखी के कवी कबीदास जी हैं। साखी में कबीरदास जी निंदा करने वाले व्यक्तियों को अपने पास रखने की सलाह देते हैं ताकि आपके स्वभाव में सकारात्मक परिवर्तन आ सके।अर्थात हमें हमेशा निंदा करने वाले व्यक्तिओं को अपने पास रखना चाहिए। हो सके तो अपने आँगन में ही उनके लिए घर बनवा लेना चाहिए अर्थात हमेशा अपने आस-पास हीं रखना चाहिए। ताकि हम उनके द्वारा बताई गई हमारी गलतिओं को या उनके द्वारा हमारे लिए की गई बुराई को सुधार सकें। यह हमारे स्वभाव के लिए साबुन रुपी कार्य करेगा और इस साबुन - पानी की मदद से हम अपने आप को आसानी से परिमार्जित या साफ़ कर पाएंगे ।


7)पोथी पढ़ि – पढ़ि जग मुवा , पंडित भया न कोइ।

ऐकै अषिर पीव का , पढ़ै सु पंडित होइ।


पोथी = पुस्तक

मुवा = मरना

भया = बनना

अषिर =अक्षर

पीव = प्रिय

व्याख्या :— प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। साखी में कबीर जी पुस्तकीय ज्ञान को महत्त्व न देकर ईश्वर के प्रेम को महत्त्व देते हैं।अर्थात इस संसार में मोटी – मोटी पुस्तकें या किताबें पढ़ कर बहुत से मनुष्य मर गए परन्तु कोई भी मनुष्य पंडित या ज्ञानी नहीं बन सका। यदि कोई व्यक्ति ईश्वर प्रेम का एक भी अक्षर पढ़ ले तो वह पंडित बन सकता अर्थात ईश्वर से प्रेम या सच्ची भक्ति हीं एक सच है और इसे जानने-समझने वाला व्यक्ति हीं वास्तविक अर्थ में ज्ञानी है।


8)हम घर जाल्या आपणाँ , लिया मुराड़ा हाथि।

अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि।।


जाल्या = जलाया

आपणाँ = अपना

मुराड़ा = जलती हुई लकड़ी , ज्ञान

जालौं = जलाऊं

तास का = उसका

व्याख्या :—प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से ली गई है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। साखी में कबीर मोह – माया रूपी घर को जला कर, त्याग कर ज्ञान को प्राप्त करने की बात करते हैं। अर्थात कबीर ने अपने हाथों से हीं अपना मोह -माया रूपी घर को जला दिया है और सच्चे ईश्वर भक्ति के ज्ञान को प्राप्त कर लिया है। अब उनके हाथों में जलती हुई ज्ञान रूपी मशाल है। जो भी उनके साथ चलना चाहता है वे उसका घर इस ज्ञानरूपी मशाल से जलाएंगे और उसे भी मोह – माया से मुक्त कर सच्चे ज्ञान को प्रदान करेंगे।








पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर


प्रश्न) मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने मन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?

उत्तर- मनुष्य को हमेशा मीठे वचन बोलने चाहिए। मधुर वचन बोलने से उसे सुनने वाला आनंद का अनुभव करता है क्योंकि मीठी वाणी कानों से सीधे हृदय पर पहुँचती है। किसी के द्वारा बोले गए कटु वचन तीर की भांति हृदय में चुभने वाले होते हैं। मधुर वचन से हम दूसरों को ही सुख प्रदान नहीं करते अपितु हमें भी शीतलता का अनुभव होता है। मधुर वचनों के प्रयोग से हमारा अहंकार नष्ट हो जाता है। अहंकार के नष्ट होने पर हमें शीतलता प्राप्त होती है।



प्रश्न) दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- दीपक के प्रकाश से अँधेरा खत्म हो जाता है, उसी प्रकार प्रभु के प्रेम का प्रकाश हमारे मन के सारे भ्रम, शंका और प्रश्नों को समाप्त कर देता हैं। ज्ञान रूपी दीपक के जलते ही मनुष्य का अज्ञान रूपी अँधकार उसके प्रकाश में समाप्त हो जाता है। ज्ञान के दीपक के जलते हीं मनुष्य ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग की ओर चल पड़ता है।



प्रश्न )ईश्वर कण -कण में व्याप्त है पर मनुष्य किन कारणों से उसे नहीं देख पाता?

उत्तर) ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, परंतु अज्ञान के वश में होने के कारण मनुष्य उसे देख नहीं पाता और उसे ढूँढने के लिए इधर से उधर भटकता रहता है। अपने अहंकार और घमंड के कारण भी वह उस ईश्वर को देख ही नहीं पाता और पागलों की भाँति उसे तलाशता रहता है।


प्रश्न) संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- संसार में हर वो व्यक्ति सुखी है जो केवल सांसारिक मोह-माया में डूबा रहता है और जिसके जीवन का मूल उद्देश्य केवल खाना, पीना और सोना है वही व्यक्ति संसार के लगभग सभी सुखों को ही सुख मानते हैं।

इसके विपरीत जो व्यक्ति संसार की नश्वरता को देखकर रोता रहता है, वह दुखी है। ‘सोना’ अज्ञान में पड़े रहना तथा ‘जागना’ ज्ञान प्राप्त करने की दशा के प्रतीक हैं। इन शब्दों का प्रयोग यहाँ प्रतीकात्मक रूप में हुआ है।सोने वाला व्यक्ति वास्तव में सुखी नहीं है क्योंकि वह अज्ञानी है और सुख के सही अर्थ को नहीं जानता। ‘जागा’ व्यक्ति ईश्वर संबंधी रहस्य को जानता है। वह संसार कि दशा देखकर दुखी होता है। क्योंकि संसार अज्ञान से निरंतर नष्ट होता जा रहा है।


प्रश्न) अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?

उत्तर- अपने स्वभाव को निर्मल बनाने के लिए कबीर ने बताया है कि अपने निंदक को अपने पास रखिए। अपनी निंदा करने वाले को तो अपने ही घर में या अपने आसपास रखना चाहिए। ऐसा करने से हमारा स्वभाव अपने आप ही निर्मल हो जाएगा क्योंकि निंदा करने वाला व्यक्ति हमारे गलत कार्यों की निंदा करेगा तो हम अपने आप को सुधारने का प्रयास करेंगे।


प्रश्न) ‘पोथी पढ़ि- पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोई।’ भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति का भाव यह है कि ईश्वर की प्राप्ति किताबी ज्ञान या पोथियाँ पढ़ने से नहीं होती । पुस्तकें पढ़-पढ़कर यह संसार नष्ट हो गया, किंतु किसी को सच्चा ज्ञान नहीं मिल सका अर्थात् ईश्वर नहीं मिल सका। जो व्यक्ति ईश्वर-प्रेम के केवल एक अक्षर को ही जान लेता है, वही सच्चा विद्वान है। धर्म के ग्रथों को पढ़कर स्वयं को विद्वान और ज्ञानी कहने वाले सदा रोते रहे हैं और मिटते रहे हैं किंतु ईश्वर प्रेम के एक अक्षर को समझने वाला व्यक्ति सच्चा विद्वान होता है।


प्रश्न)कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता प्रकट कीजिए।

उत्तर -: कबीर की साखिओं में अनेक भाषाओँ का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। उद्धृत साखिओं की भाषा की विशेषता यह है कि इसमें भावना की अनुभूति ,रहस्यवादिता तथा जीवन का संवेदनशीलता तथा सहजता को प्रमुख स्थान दिया गया है।



निम्नलिखित पंक्तिओं के भाव स्पष्ट कीजिये


(1 ) ‘ बिरह भुवंगम तन बसै , मंत्र न लागै कोइ। ‘


भाव -: प्रस्तुत पंक्ति का भाव है कि जब किसी मनुष्य के मन में अपनों से बिछड़ने का दुख रूपी साँप जगह बना लेता है तो कोई दवा ,कोई मंत्र काम नहीं आते।


(2 ) ‘ कस्तूरी कुंडलि बसै ,मृग ढूँढ़ै बन माँहि। ‘


भाव -: प्रस्तुत पंक्ति का भाव यह है कि अज्ञान के कारण कस्तूरी हिरण पूरे वन में कस्तूरी की खुशबू को ढूंढता रहता है जबकि वह तो उसी के पास नाभि में विद्यमान होती है।


( 3 ) ‘ जब मैं था तब हरि नहीं ,अब हरि है मैं नहीं। ‘


भाव -: इस पंक्ति का भाव यह है कि अहंकार और ईश्वर एक दूसरे के विपरीत हैं जहाँ अहंकार है वहां ईश्वर नहीं होते और जहाँ ईश्वर है वहां अहंकार का वास नहीं होता।


( 4 ) ‘ पोथी पढ़ि – पढ़ि जग मुवा , पंडित भया न कोइ। ‘


भाव -: इस पंक्ति का भाव यह है कि किताबी ज्ञान किसी को पंडित नहीं बना सकता , पंडित बनने के लिए ईश्वर – प्रेम का एक अक्षर ही काफी है।



पाठ से अलग प्रश्नोत्तर :--


प्रश्न )कस्तूरी कहाँ होती है और मृग उसे कहाँ तलाशता है?

उत्तर) कस्तूरी मृग की नाभि में होती है, पर मृग को इस विषय में ज्ञान न होने के कारण वो उसे पूरे वन में तलाशता है |


प्रश्न )कबीर निंदक को कहाँ रखने को कहते हैं?

उत्तर) कबीर कहते हैं कि निंदक को अपने आँगन में कुटिया बनवाकर रखना चाहिए |


प्रश्न )व्यक्ति को ईश्वर की प्राप्ति कब तक नहीं होती?

उत्तर) व्यक्ति के मन में जब तक अहंकार रहता है, तब तक उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती |



प्रश्न )विरह का सर्प वियोगी की क्या दशा कर देता है?

उत्तर) विरह एक ऐसे सर्प के सामान है जो अगर किसी को जकड ले,तो उसे कोई मात्रा भी मुक्ति नहीं दिला सकता | ईश्वर की विरह में भक्त भी या तो प्राण त्याग देता है या विक्षिप्त (पागल) हो जाता है|



प्रश्न ) ईश्वर को पाने के लिए मनुष्य को क्या करना होगा?

उत्तर) ईश्वर को पाने के लिए मनुष्य को अपना अहंकार त्यागना होगा।


प्रश्न )कबीर हाथ में क्या लेकर खड़े हैं?

उत्तर) कबीर अपने हाथ में ज्ञान रूपी जलती हुई लकड़ी लिए खड़े हैं, जिससे वे विषय -विकारों को जला कर राख करना चाहते हैं।


प्रश्न )संसार किन बातों में मस्त है?

उत्तर) संसार भोग - विलास को ही जीवन का सत्य समझ उन्हें भोगने में मस्त है।


प्रश्न )कबीर क्या देखकर दुखी होते हैं?

उत्तर) कबीर यह देखकर दुखी हैं कि मनुष्य अपना बहुमूल्य जीवन भोग-विलास में लिप्त होकर बर्बाद कर रहा है।


प्रश्न) ‘कुंडली’ का क्या अर्थ है ?

उत्तर- कुंडली का शाब्दिक अर्थ नाभि होता है।


प्रश्न) ‘ऐसैं घटि-घटि राँम है’ का क्या अर्थ है ?

उत्तर- प्रश्नोक्त पंक्ति का अर्थ है कि कण-कण में राम अर्थात् ईश्वर विराजमान हैं।


प्रश्न )कबीर की साखियों से क्या शिक्षा मिलती है ?

उत्तर) कबीर की साखियाँ हमें जीवन की व्यावहारिकता का ज्ञान देती हैं, और हमें जीवन मूल्यों से भी परिचित करवाती हैं | वे मीठी वाणी को एक औषधी बताते हैं जो बोलने वाले तथा सुनने वाले दोनों को ही शांति का अनुभव प्रदान करती है | वे संसार की नश्वरता से पाठक को अवगत कराते हुए समझाते हैं कि विषय -विकार से मुक्त होकर ईश्वर की प्राप्ति का यत्न करना चाहिए | निंदक को साबुन मानकर उसे अपनी बुराइयों को दूर करने का साधन समझकर अपने साथ रखना चाहिए | ईश्वर कहीं और नहीं मनुष्य के हीं अंदर तथा संसार के कण-कण में बसता है इसलिए उसकी प्राप्ति के लिए कर्मकांडों,आडम्बरों की नहीं बल्कि सच्ची भक्ति की आवश्यकता होती है | ऐसी जीवनोपयोगी शिक्षाएँ हमें कबीर की साखियों से मिलती हैं |




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