भ्रान्तो बालः Hindi Translation NCERT SHEMUSHI CLASS 9 Chapter 6
भ्रान्तः कश्चन बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुम् अगच्छत्। किन्तु तेन सह केलिभिः कालं क्षेप्तुं तदा कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत्। यतः ते सर्वेऽपि पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणाः अभवन्। तन्द्रालुः बालः लज्जया तेषां दृष्टिपथमपि परिहरन् एकाकी किमपि उद्यानं प्राविशत्।
सः अचिन्तयत् - "विरमन्तु एते वराकाः पुस्तकदासाः। अहं तु आत्मानं विनोदयिष्यामि। सम्प्रति विद्यालयं गत्वा भूयः क्रुद्धस्य उपाध्यायस्य मुखं द्रष्टुं नैव इच्छामि। एते निष्कुटवासिनः प्राणिन एव मम वयस्याः सन्तु इति।
हिंदी अर्थ -
कोई भ्रमित बालक पाठशाला जाने के समय खेलने के लिए चला गया, किंतु उसके साथ खेल के द्वारा समय बिताने के लिए कोई भी मित्र उपलब्ध नहीं था। वे सभी पहले दिन के पाठों को याद करके विद्यालय जाने की शीघ्रता से तैयारी कर रहे थे। आलसी बालक लज्जावश उनकी दृष्टि से बचता हुआ अकेला ही उद्यान में प्रविष्ट हो गया।
उसने सोचा-ये बेचारे पुस्तक के दास वहीं रुकें, मैं तो अपना मनोरञ्जन करूँगा। क्रुद्ध गुरुजी का मुख मैं बाद में देखूँगा। वृक्ष के खोखलों में रहने वाले ये प्राणी (पक्षी) हमारे मित्र बन जाएँगे।
अथ सः पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं दृष्ट्वा तं क्रीडितुम् द्वित्रिवारं आह्वयत्। तथापि, सः मधुकरः अस्य बालस्य आह्वानं तिरस्कृतवान्। ततो भूयो भूयः हठमाचरति बाले सः मधुकरः अगायत् - "वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा" इति।
तदा स बालः ‘अलं भाषणेन अनेन मिथ्यागर्वितेन कीटेन’ इति विचिन्त्य अन्यत्र दत्तदृष्टिः चञ्च्वा तृणशलाकादिकम् आददानम् एकं चटकम् अपश्यत्, अवदत् च-‘‘अयि चटकपोत! मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि। एहि क्रीडावः। एतत् शुष्कं तृणं त्यज स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि’’ इति। स तु "मया वटदुमस्य शाखायां नीडं कार्यम्" इत्युक्त्वा स्वकर्मव्यग्रोः अभवत्।
हिंदी अर्थ -
तब उसने उस उपवन में घूमते हुए भौंरे को देखकर खेलने के लिए बुलाया। उस भौंरे ने उस बालक की दो-तीन आवाज़ों की ओर ध्यान ही नहीं दिया। तब बार-बार हठ करने वाले उस बालक के प्रति उस भौरे ने गुनगुनाया-हम तो पराग संचित करने में व्यस्ता हैं।
तब उस बालक ने अपने मन में 'व्यर्थ में घमंडी इस कीड़े को छोड़ो' ऐसा सोचकर दूसरी ओर देखते हुए एक चिड़े (पक्षी) को चोंच घास-तिनके आदि उठाते हुए देखा। वह (बच्चा) उस (चिड़े) से बोला- "अरे चिड़िया के बच्चे (शावक)! तुम मुझ मनुष्य के मित्र बनोगे? आओ खेलते हैं। इस सूखे तिनके को छोड़ो, मैं तुम्हे स्वादिष्ट खाद्य-वस्तुओं के ग्रास दूँगा।" "मुझे बरगद के पेड़ की शाखा (टहनी) पर घोंसला बनाना है। अतः मैं काम से जा रहा हूँ"-ऐसा कहकर वह अपने काम में व्यस्त हो गया।
तदा खिन्नो बालकः एते पक्षिणो मानुषेषु नोपगच्छन्ति। तद् अन्वेषयामि अपरं मानुषोचितम् विनोदयितारम् इति विचिन्त्य पलायमानं कमपि श्वानम् अवलोकयत्। प्रीतो बालः तम् इत्थं समबोधयत् – रे मानुषाणां मित्र! किं पर्यटसि अस्मिन् निदाघदिवसे? इदं प्रच्छायशीतलं तरुमूलम् आश्रयस्व। अहमपि क्रीडासहायं त्वामेवानुरूपं पश्यामीति। कुक्कुरः प्रत्यवदत्-
यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य।
रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि।। इति।
हिंदी अर्थ -
तब दुखी बालक ने कहा-ये पक्षी मनुष्यों के पास नहीं आते। अतः मैं मनुष्यों के योग्य मनोरंजन करने वाले किसी अन्य को ढूँढ़ता हूँ, ऐसा सोचकर भागते हुए किसी कुत्ते को देखा। प्रसन्न हुए उस बालक ने इस प्रकार कहा-हे मनुष्यों के मित्र! इतनी गर्मी के दिन में व्यर्थ क्यों घूम रहे हो? इस घनी और शीतन छाया वाले पेड़ का आश्रय लो। मैं भी खेल में तुम्हें ही उचित सहयोगी सझता हूँ। कुत्ते ने कहा—
जो पुत्र के समान मेरा पोषण करता है, उस स्वामी के घर की रक्षा के कार्य में लगे होने से मुझे थोड़ा-सा भी नहीं हटना चाहिए।
सर्वैः एवं निषिद्धः स बालो भग्नमनोरथः सन्-‘कथमस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकार्ये निमग्नो भवति। न कोऽपि मामिव वृथा कालक्षेपं सहते। नम एतेभ्यः यैः मे तन्द्रालुतायां कुत्सा समापादिता। अथ स्वोचितम् अहमपि करोमि इति विचार्य त्वरितं पाठशालाम् अगच्छत्।
ततः प्रभृति स विद्याव्यसनी भूत्वा महतीं वैदुषीं प्रथां सम्पदं च अलभत्।
हिंदी अर्थ -
सबके द्वारा इस प्रकार मना कर दिए जाने पर टूटे मनोरथ (इच्छा) वाला वह बालक सोचने लगा-इस संसार में पलो प्राणी अपने-अपने कर्तव्य में व्यस्त है। कोई भी मेरी तरह समय नष्ट नहीं कर रहा है। इन सबको प्रणाम, जिन्होंने आलस्य के प्रति मेरी घृणा भावना उत्पन्न कर दी। अतः मैं भी अपना उचित कार्य करता हूँ, ऐसा सोचकर वह शीघ्र पाठशाला चला गया। तबसे विद्याध्ययन के प्रति इच्छायुक्त होकर उसने विद्वता, कीर्ति तथा धन को प्राप्त किया।
Ghatiya
Very good👍
..
Bahut mast